कोई किसी से ख़ुश हो, और वो बारहा हो, ये बात तो ग़लत है,
रिश्ता लिबास बनकर मैला नहीं हुआ हो, ये बात तो ग़लत है।
वो चांद रहगुज़र का, साथी जो था सफ़र का, था मौजिज़ा (जादू) नज़र का,
हर बार की नज़र से, रौशन वो मौजिज़ा हो, ये बात तो ग़लत है।
है बात उसकी अच्छी, लगती है दिल को सच्ची, फिर भी है थोड़ी कच्ची,
जो उसका हादसा है, मेरा भी तजुर्बा हो, ये बात तो ग़लत है।
दरिया है बहता पानी, हर मौज है रवानी, रुकती नहीं कहानी,
जितना लिखा गया है, उतना ही वाक़या हो, ये बात तो ग़लत है।
ये युग है कारोबारी, हर शै है इश्तिहारी, राजा हो या भिखारी,
शोहरत है जिसकी जितनी, उतना ही मर्तबा (प्रतिष्ठा) हो, ये बात ग़लत है।
(उर्दू अदब के शोहरतमंद शायर निदा फ़ाज़ली के अ`शआर)
Thursday, 8 January 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
sir, kabhi mujhe bhi yaad kar lijiye....mera number to hoga hi 9910480972.waise 14 feb ke liye congratulation...aakhir vanvaas khatam hua
Post a Comment