अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाए,
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए।
जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं,
उन चिराग़ों को हवाओं से बचाया जाए।
बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं,
किसी तितली को न फूलों से न उड़ाया जाए।
ख़ुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सबमें
और कुछ दिन अभी औरों को सताया जाए।
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।
(मशहूर शायर जनाब निदा फ़ाज़ली की नज़्म)
Thursday, 8 January 2009
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