Thursday, 8 January 2009

तन्हा-तन्हा....

तन्हा-तन्हा दुख झेलेंगे महफ़िल-महफ़िल गाएंगे,
जब तक आंसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनाएंगे।

आज उन्हें हंसते देखा तो कितनी बातें याद आईं,
कुछ दिन हमने भी सोचा था उनको भूल ना पाएंगे।

तुम जो सोचो वो तुम जानो, हम तो अपनी कहते हैं,
देर ना करना घर जाने में वर्ना घर खो जाएंगे।

बच्चों के छोटे हाथों को चांद-सितारे छूने दो,
चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे।

अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हों मुमकिन है,
हम तो उस दिन राय देंगे, जिस दिन धोखा खाएंगे।

किन राहों से दूर है मंज़िल, कौन-सा रस्ता आसां है,
हम भी जब थक कर बैठेंगे औरों को समझाएंगे।

(उर्दू अदब के शोहरतमंद शायर निदा फ़ाज़ली के अ`शआर)

No comments: