अचानक पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ मेरा नाम लेकर इतनी ज़ोर से गूंजी जैसे कोई बम फटा हो...! ख़ैर ये बम फटने से कम भी नहीं था। मेरा दोस्त, मेरा कलीग राजेश के चेहरे की ख़ुशी अजब सी पहेली खेल रही थी। मैंने पूछा, हुआ क्या- उसने मेरे हाथ से कॉफ़ी का आधा कप छीनकर डस्टबिन में फ़ेंकते हुए कहा- आज रात की टेंशन दूर हो गई। मैं अब भी नहीं समझ पाया और मेरी सवालिया नज़रें देखकर उसने कहा- चल पहले एक कश लगाकर आते हैं। सिगरेट की दुकान बीस क़दम ही दूर थी, लेकिन मेरे दिल की बेचैनी सैकड़ों उछालें मार रही थी। दो सिगरेट सुलग उठीं और उसके बाद हम दोनों ने अपने होठों से लेकर कलेजे तक को सिगरेट के सुरूर में डुबोना शुरू कर दिया। आधी से ज़्यादा सिगरेट ख़त्म हो गई, लेकिन मेरा दिल अब भी राजेश के दिल का `राज़` जानने को बेक़रार था। थोड़ी देर में उसने मुझ पर तरस खाया और बोला यार- बुलेटिन की टेंशन मत ले। अभी दो घंटे बाक़ी हैं। मैं अब भी नहीं समझा। वो थोड़ा धीरे से बोला- अबे करीना को....ने किस किया है। बिल्कुल नया फोटो नेट पर आया है। लेकिन, किसी को मालूम नहीं। पिछली बार तो मैंने शोर मचा दिया था और हमारी ख़बर हमसे पहले वाली प्रोग्रामिंग टीम ने छीन ली थी, लेकिन इस बार मैंने जल्दी से वो फोटो डाउनलोड करके नेट का कनेक्शन हटा दिया है, जब तक बाक़ी लोग कुछ समझेंगे अपना काम हो जाएगा। अब सिगरेट के धुंए का असर मुझ पर होने लगा था। राजेश की बात पूरी होते-होते सिगरेट के आख़िरी कश को कुछ ज़्यादा ही खींच गया और उसकी आंच मेरे होंठों ने महसूस की। मैं धीरे से चीखा...इसससस।
राजेश ने कहा चलो- मैंने कहा नहीं एक-एक कश और हो जाए। फिर से दो सिगरेट के धुंए हवा में तैरने लगे। इस बार मैं कुछ ज़्यादा जोश में था। मैंने पूछना शुरू किया- फोटो कैसा है...? क्रोमा पर फुल फ्रेम वही फोटो कैसा लगेगा...? किसिंग सीन में दोनों की आंखें खुली हैं या बंद...? करीना का चेहरा बिल्कुल साफ़ नज़र आ रहा है या उसमें भी कोई `खेल` हो सकता है...? मुझे बीच में रोकते हुए राजेश बोला-यार तुम तो पूरे किसिंग सीन में डूबने की कोशिश करने लगे। अबे किस मैंने थोड़े ना किया है। पेन ड्राइव में फोटो है, चुपचाप ग्राफिक्स में दे आना और चेहरे से कुछ ज़ाहिर मत होने देना। बुलेटिन के ठीक दस मिनट पहले `कमिंग अप` में सरप्राइज़ देंगे। मैंने पूछा- लेकिन बॉस को क्या बताएंगे। वो बोला- अबे कह देना सर आप रिलैक्स रहिए, बुलेटिन एकदम धांसू जाएगा। मैं थोड़ा रिलैक्स और थोड़ा नर्वस होने लगा। ख़ैर मामला किसिंग सीन का था, इसलिए कॉन्फिडेंट होकर अपने काम पर लग गया। वक़्त बीता और टाइम पर बुलेटिन गया। उम्मीद के मुताबिक़ सबकुछ वैसा ही हुआ। पूरे बाइस मिनट तक `किस के किस्से` पर खूब खेले। बुलेटिन ख़त्म होते ही बॉस ने फोन करके शाबाशी दी। तभी राजेश फिर चीखा- अबे यहीं खड़े हो, चलो...! दोनों फिर से उसी सिगरेट की दुकान पर आ गए और इस बार हर कश किसी किसिंग सीन से ज़्यादा गर्म महसूस हो रहा था।
Wednesday, 9 December 2009
Monday, 7 September 2009
ऐड इज़ बैड
दुनिया को अपने कैमरे की नज़रों से दिखाने वाली मीडिया पर आजकल कुछ ख़ास लोगों की नज़रें टेढ़ी हैं। हमारे माननीयों (सांसद) ने इसी कड़ी में मीडिया के एक शो की संसद में ख़बर ली। बहस भी हुई कि इस शो के कंटेट सच चाहे जितने हों, लेकिन ख़तरनाक भी कम नहीं हैं। इससे समाज पर बुरा असर पड़ेगा। ख़ैर शो तो जारी है, लेकिन मैं सच्चाई के इस शो के बिल्कुल क़रीब से गुज़र रहा था, तो महसूस हुआ कि सिर्फ़ किसी शो को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है। शो के बीच में चलने वाले ऐड्स (विज्ञापनों) पर नज़र गई, तो नज़रें और भी शर्मसार हो गईं। अश्लील, फ़ूहड़ और अभद्र तरीका, जो भी कह लें आजकल ऐड ऐसे ही परोसे जा रहे हैं। किसी शो पर तो दस-पांच मिनट टिका जा सकता है, लेकिन ऐड पर भरोसा नहीं। यहां बात किसी एक विज्ञापन की नहीं, बल्कि नब्बे फीसदी ऐड ऐसे ही होते हैं। हैरत की बात ये है, कि प्रॉडक्ट की ज़रूरत हो या नहीं लेकिन हर ऐड की ज़रूरत है एक लड़की। विज्ञापन क्लीन शेव का यानि करीबी शेव का हो, तो आधे से भी कम कपड़ों में एक नहीं बल्कि दो-तीन लड़कियां ज़रूर लड़के के करीब नज़र आती दिखाई देती हैं और वो भी फूहड़ अंदाज़ में। शेविंग क्रीम की तरह फेस क्रीम का भी यही हाल है। लड़का क्रीम का पैक खोलता है और लड़कियां ना जाने कहां-कहां से निकलकर प्रकट होने लगती हैं और उसके बाद का सीन फैमिली के साथ बैठकर देखा नहीं जा सकता। क्रीम का एड इतना ख़तरनाक होता है, तो जेंट्स डियोडरेंट, नहाने का साबुन, अंडरवियर के ऐड का प्रेज़ेंटेशन हम-आप रोज़ ही देखते हैं। मुद्दा ये है कि, आदमी के उपयोग की चीज़ों में किसी महिला का क्या काम। सेफ्टी रेज़र से लेकर जींस तक। हर विज्ञापन में सिर्फ़ एक ही चीज़ सबसे ज़्यादा नज़र आती है और वो है ऐड के नाम पर बैड कंटेट दिखाना। भला क्लोज़ शेव में लड़की ना दिखाई जाए, तो क्या शेव अधूरी रह जाएगी ? क्या रेज़र ठीक काम नहीं करेगा ? या फिर शेव करना व्यर्थ हो जाएगा ? अब तो कोई भी प्रोग्राम हो, बस यही डर लगता है, कि कहीं कोई टोइंग टाइप का ऐड ना नज़र आ जाए। दरअसल, अंदर के कपड़ों के एक ऐड में टोइंग का एक्शन भी दिखाया जाता है। बस मेरे आठ साल के भतीजे ने ये ऐड देख लिया और पूछता रहता है, चाचा ये टोइंग करने के बाद नीचे क्यों झुक जाता है ? मैं अक्सर उसके सवाल पर नाराज़गी ज़ाहिर करता हूं, लेकिन वो बेचारा क्या जाने, कि इसका मेरे पास जवाब भी नहीं है। हालांकि, कई साल पहले के ऐड सभी अक्सर गुनगुनाया करते थे। जैसे नया नौ दिन पुराना सौ दिन, खांसी के लिए बस....। या वॉशिंग पाउडर निरमा का ऐड। कहा जाता है कि प्रॉडक्ट कोई भी हो, कंटेट
बेहतर हो तो चीज़ ज़रूर बिकती है, लेकिन अब तो प्रॉडक्ट में कंटेट कम और ऐड में एक्सपोज़र ज़्यादा होता है। अंडरवियर के एक ऐड का ज़िक्र इसलिए करना चाहता हूं, कि इस ऐड में लड़का बेहद बहादुर नज़र आता है, लेकिन उसकी वीरता अश्लील ज़्यादा लगती है। अक्सर बच्चे ऐसे ऐड का सीक्वेंस देखकर उनकी नकल करते हैं। पुरुषों के प्रॉडक्ट ही काफ़ी हैं, महिलाओं के बारे में बात होगी, तो बात करना मुश्किल होगा। बहरहाल, जाने कहां गए ऐड के वो पुराने दिन। अब तो फैमिली के साथ टीवी देखते वक्त यही लगता है, कि बच्चों को सीरियल के कंटेट से बचाया जाए या फिर टोइंग टाइप के ढेरों ऐड से। डियोडरेंट, शेविंग क्रीम, टूथ ब्रश, पेस्ट या कोल्ड ड्रिंक, सभी विज्ञापन में एक सा कंटेट (ना देख सकने वाला ) देखा जा सकता है। मैं तो ऐसे ऐड पर बच्चों के सवालों से लाजवाब हूं, क्या ऐड वाले इतने बहादुर हैं, कि बच्चों के सवालों का कोई जवाब देंगे... ?
बेहतर हो तो चीज़ ज़रूर बिकती है, लेकिन अब तो प्रॉडक्ट में कंटेट कम और ऐड में एक्सपोज़र ज़्यादा होता है। अंडरवियर के एक ऐड का ज़िक्र इसलिए करना चाहता हूं, कि इस ऐड में लड़का बेहद बहादुर नज़र आता है, लेकिन उसकी वीरता अश्लील ज़्यादा लगती है। अक्सर बच्चे ऐसे ऐड का सीक्वेंस देखकर उनकी नकल करते हैं। पुरुषों के प्रॉडक्ट ही काफ़ी हैं, महिलाओं के बारे में बात होगी, तो बात करना मुश्किल होगा। बहरहाल, जाने कहां गए ऐड के वो पुराने दिन। अब तो फैमिली के साथ टीवी देखते वक्त यही लगता है, कि बच्चों को सीरियल के कंटेट से बचाया जाए या फिर टोइंग टाइप के ढेरों ऐड से। डियोडरेंट, शेविंग क्रीम, टूथ ब्रश, पेस्ट या कोल्ड ड्रिंक, सभी विज्ञापन में एक सा कंटेट (ना देख सकने वाला ) देखा जा सकता है। मैं तो ऐसे ऐड पर बच्चों के सवालों से लाजवाब हूं, क्या ऐड वाले इतने बहादुर हैं, कि बच्चों के सवालों का कोई जवाब देंगे... ?
Monday, 20 July 2009
बलात्कार के साइड इफेक्ट्स....!

शुरुआत में ही बता दूं कि, बात पूरी तरह सियासी है, और वो भी सियासी भूचाल की। अजी भूचाल तो बाद में आया, लेकिन मैं ज़रा कुछ कहना चाहता हूं। मैंने पड़ोस के बंटी को अपने दोस्त से रीता आंटी (रीता बहुगुणा जोशी जी) के घर फूंक तमाशा देख वाले अंदाज़ के बारे में बात करते सुना। वैसे रीता जी ने क्या कहा और उसका क्या असर क्या हुआ ये पूरी दुनिया ने देखा। तो मेहरबान-कद्रदान बंटी ने अपने दोस्त से कहा, `यार बलात्कार किसी का भी हो सर्वथा अनुचित और अपराध है. लेकिन ये बात समझ नहीं आई कि बलात्कार पर भी इतना हंगामा नहीं हुआ, जितना उसके साइड इफेक्ट्स पर। ना जाने कहां से रीता जी अपना सियासी धर्म निभाने के लिए बलात्कार पीड़ित महिलाओं से मिलने पहुंच गई। बलात्कार करने वालों को सज़ा तो क्या मिलती, पीड़ितों को मुआवज़ा मिल गया। ख़ैर, ये मुआवज़ा शायद रीता जी को कम लगा, तो उन्होंने पीतलनगरी (मुरादाबाद) में जनसभा में अपने तीखे अंदाज़ से बलात्कार की राशि कर दी पूरे एक करोड़, लेकिन उन्होंने एक शर्त रख दी, कि उसे हासिल करने के लिए पहले किसी ख़ास शख़्स का (नाम नहीं ले रहा हूं, भाई क्या मेरा भी घर फुंकवाओगे..?) बलात्कार होना चाहिए। बलात्कार तो क्या होता, उसके पहले रीता जी की बलात्कार की शर्त ने साइड इफेक्ट दिखा दिया। उसके बाद तो उनके माफ़ी मांगने के बावजूद उनके घर के साथ बलात्कार (तबाह) हुआ। फिर इस घटना के साथ यूपी पुलिस की चुप्पी ने आग में घी का काम किया। रीता जी के बहाने ही सही राहुल गांधी अमेठी पहुंचे और रीता जी के शब्दों को गलत, लेकिन उनकी भावनाओं को सही बताया। अब उनकी कौन सी भावना सही थी, शर्त की या फिर राशि की। बहरहाल, यूपी की निज़ाम रीता जी को माफ़ करने के मूड में नहीं हैं, और बेचारी रीता जी ने अपने वक़ील के ज़रिए अदालत से कहा- इस जेल से मुझे बचाओ। अदालत ने उनकी अपील सुनी और रीता आंटी बाहर आ गईं, लेकिन उनके अंदर जाने से पहले, जेल में दो दिन रहने के बाद और उनके बाहर आ जाने के बाद तक बलात्कार का मुद्दा बलात्कार की तरह ही बना हुआ है। यानि ग़रीब लड़कियों और महिलाओं से बलात्कार जैसे संगीन मामले में रीता जी के बयान के बाद कांग्रेस को अपना हाथ दलितों से दूर होता दिखा और बीएसपी कार्यकर्ताओं ने बयान की आग में अपने वोट बैंक को और पकाने की कोशिश की है। अच्छा होगा, कि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती जी बलात्कार पीड़ितों के लिए राशि से ज़्यादा मुक़म्मल कार्रवाई को लेकर सजग हों, और रीता जी बलात्कार को दस का दम ना बनाकर पीड़ितों को इंसाफ़ दिलाने की कोशिशें करें। बहरहाल, लगता नहीं, कि देश की सबसे बड़ी पार्टी देश के सबसे बड़े सूबे में फ़िलहाल बलात्कार की घटनाओं के सच का सामना करने के मूड में होगी। बंटी ने तो एक ही झटके में टीवी के हाई टीआरपी प्रोग्रामों को रीता आंटी से जोड़ दिया। क्या करें, बंटी को लगता है, कि रीता आंटी ने भी शायद अपनी टीआरपी के लिए ही तो ऐसा बयान नहीं दिया....? अब रीता जी भी क्या करें, जो हवन वो करने गईं थीं, उसमें कांग्रेस के हाथ पर आंच आ गई और वो सोच रही होंगी...ये दौर-ए-सियासत भी क्या दौर-ए-सियासत है, चुप हूं तो नदामद, बोलूं तो क्या बग़ावत है। ज़रा धीरे बोलो बंटी, इस घटना को मुद्दा बनाकर कहीं टीवी पर एक करोड़ रुपये के बलात्कार का नया रियलिटी शो ना शुरू हो जाए.
Thursday, 8 January 2009
ये बात तो ग़लत है...
कोई किसी से ख़ुश हो, और वो बारहा हो, ये बात तो ग़लत है,
रिश्ता लिबास बनकर मैला नहीं हुआ हो, ये बात तो ग़लत है।
वो चांद रहगुज़र का, साथी जो था सफ़र का, था मौजिज़ा (जादू) नज़र का,
हर बार की नज़र से, रौशन वो मौजिज़ा हो, ये बात तो ग़लत है।
है बात उसकी अच्छी, लगती है दिल को सच्ची, फिर भी है थोड़ी कच्ची,
जो उसका हादसा है, मेरा भी तजुर्बा हो, ये बात तो ग़लत है।
दरिया है बहता पानी, हर मौज है रवानी, रुकती नहीं कहानी,
जितना लिखा गया है, उतना ही वाक़या हो, ये बात तो ग़लत है।
ये युग है कारोबारी, हर शै है इश्तिहारी, राजा हो या भिखारी,
शोहरत है जिसकी जितनी, उतना ही मर्तबा (प्रतिष्ठा) हो, ये बात ग़लत है।
(उर्दू अदब के शोहरतमंद शायर निदा फ़ाज़ली के अ`शआर)
रिश्ता लिबास बनकर मैला नहीं हुआ हो, ये बात तो ग़लत है।
वो चांद रहगुज़र का, साथी जो था सफ़र का, था मौजिज़ा (जादू) नज़र का,
हर बार की नज़र से, रौशन वो मौजिज़ा हो, ये बात तो ग़लत है।
है बात उसकी अच्छी, लगती है दिल को सच्ची, फिर भी है थोड़ी कच्ची,
जो उसका हादसा है, मेरा भी तजुर्बा हो, ये बात तो ग़लत है।
दरिया है बहता पानी, हर मौज है रवानी, रुकती नहीं कहानी,
जितना लिखा गया है, उतना ही वाक़या हो, ये बात तो ग़लत है।
ये युग है कारोबारी, हर शै है इश्तिहारी, राजा हो या भिखारी,
शोहरत है जिसकी जितनी, उतना ही मर्तबा (प्रतिष्ठा) हो, ये बात ग़लत है।
(उर्दू अदब के शोहरतमंद शायर निदा फ़ाज़ली के अ`शआर)
अपना ग़म ले के...
अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाए,
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए।
जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं,
उन चिराग़ों को हवाओं से बचाया जाए।
बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं,
किसी तितली को न फूलों से न उड़ाया जाए।
ख़ुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सबमें
और कुछ दिन अभी औरों को सताया जाए।
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।
(मशहूर शायर जनाब निदा फ़ाज़ली की नज़्म)
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए।
जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं,
उन चिराग़ों को हवाओं से बचाया जाए।
बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं,
किसी तितली को न फूलों से न उड़ाया जाए।
ख़ुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सबमें
और कुछ दिन अभी औरों को सताया जाए।
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।
(मशहूर शायर जनाब निदा फ़ाज़ली की नज़्म)
तन्हा-तन्हा....
तन्हा-तन्हा दुख झेलेंगे महफ़िल-महफ़िल गाएंगे,
जब तक आंसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनाएंगे।
आज उन्हें हंसते देखा तो कितनी बातें याद आईं,
कुछ दिन हमने भी सोचा था उनको भूल ना पाएंगे।
तुम जो सोचो वो तुम जानो, हम तो अपनी कहते हैं,
देर ना करना घर जाने में वर्ना घर खो जाएंगे।
बच्चों के छोटे हाथों को चांद-सितारे छूने दो,
चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे।
अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हों मुमकिन है,
हम तो उस दिन राय देंगे, जिस दिन धोखा खाएंगे।
किन राहों से दूर है मंज़िल, कौन-सा रस्ता आसां है,
हम भी जब थक कर बैठेंगे औरों को समझाएंगे।
(उर्दू अदब के शोहरतमंद शायर निदा फ़ाज़ली के अ`शआर)
जब तक आंसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनाएंगे।
आज उन्हें हंसते देखा तो कितनी बातें याद आईं,
कुछ दिन हमने भी सोचा था उनको भूल ना पाएंगे।
तुम जो सोचो वो तुम जानो, हम तो अपनी कहते हैं,
देर ना करना घर जाने में वर्ना घर खो जाएंगे।
बच्चों के छोटे हाथों को चांद-सितारे छूने दो,
चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे।
अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हों मुमकिन है,
हम तो उस दिन राय देंगे, जिस दिन धोखा खाएंगे।
किन राहों से दूर है मंज़िल, कौन-सा रस्ता आसां है,
हम भी जब थक कर बैठेंगे औरों को समझाएंगे।
(उर्दू अदब के शोहरतमंद शायर निदा फ़ाज़ली के अ`शआर)
Wednesday, 7 January 2009
सफ़र को जब भी
सफ़र को जब भी किसी दास्तान में रखना,
क़दम यक़ीन में, मंज़िल ग़ुमान में रखना।
जो साथ है वही घर का नसीब है लेकिन,
जो खो गया है उसे भी मकान में रखना।
जो देखती हैं निगाहें, वही नहीं सब कुछ,
ये एहतियात भी अपने बयान में रखना।
वो एक ख़्वाब जो चेहरा कभी नहीं बनता,
बना के चांद उसे आसमान में रखना।
चमकते चांद-सितारों का क्या भरोसा है,
ज़मीं की धूल भी अपनी उड़ान में रखना।
सवाल तो बिना मेहनत के हल नहीं होते,
नसीब को भी मगर इम्तिहान में रखना।
(मक़बूल शायर जनाब निदा फ़ाज़ली की नज़्म)
क़दम यक़ीन में, मंज़िल ग़ुमान में रखना।
जो साथ है वही घर का नसीब है लेकिन,
जो खो गया है उसे भी मकान में रखना।
जो देखती हैं निगाहें, वही नहीं सब कुछ,
ये एहतियात भी अपने बयान में रखना।
वो एक ख़्वाब जो चेहरा कभी नहीं बनता,
बना के चांद उसे आसमान में रखना।
चमकते चांद-सितारों का क्या भरोसा है,
ज़मीं की धूल भी अपनी उड़ान में रखना।
सवाल तो बिना मेहनत के हल नहीं होते,
नसीब को भी मगर इम्तिहान में रखना।
(मक़बूल शायर जनाब निदा फ़ाज़ली की नज़्म)
मुंह की बात...
मुंह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन।
आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन।
सदियों-सदियों वही तमाशा, रस्ता-रस्ता लम्बी खोज,
लेकिन जब हम मिल जाते हैं, खो जाता है जाने कौन।
जाने क्या-क्या बोल रहा था, सरहद, प्यार, किताबें, ख़ून,
कल मेरी नींदों में छुपकर, जाग रहा था कौन।
मैं उसकी परछाईं हूं या वो मेरा आईना है,
मेरे ही घर में रहता है, मेरे जैसा जाने कौन।
किरन-किरन अलसाता सूरज, पलक-पलक खुलती नींदें,
धीमे-धीमे बिखर रहा है, ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन।
(शायरी की दुनिया की मक़बूल शख़्सियत जनाब निदा फ़ाज़ली की नज़्म)
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