दुनिया को अपने कैमरे की नज़रों से दिखाने वाली मीडिया पर आजकल कुछ ख़ास लोगों की नज़रें टेढ़ी हैं। हमारे माननीयों (सांसद) ने इसी कड़ी में मीडिया के एक शो की संसद में ख़बर ली। बहस भी हुई कि इस शो के कंटेट सच चाहे जितने हों, लेकिन ख़तरनाक भी कम नहीं हैं। इससे समाज पर बुरा असर पड़ेगा। ख़ैर शो तो जारी है, लेकिन मैं सच्चाई के इस शो के बिल्कुल क़रीब से गुज़र रहा था, तो महसूस हुआ कि सिर्फ़ किसी शो को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है। शो के बीच में चलने वाले ऐड्स (विज्ञापनों) पर नज़र गई, तो नज़रें और भी शर्मसार हो गईं। अश्लील, फ़ूहड़ और अभद्र तरीका, जो भी कह लें आजकल ऐड ऐसे ही परोसे जा रहे हैं। किसी शो पर तो दस-पांच मिनट टिका जा सकता है, लेकिन ऐड पर भरोसा नहीं। यहां बात किसी एक विज्ञापन की नहीं, बल्कि नब्बे फीसदी ऐड ऐसे ही होते हैं। हैरत की बात ये है, कि प्रॉडक्ट की ज़रूरत हो या नहीं लेकिन हर ऐड की ज़रूरत है एक लड़की। विज्ञापन क्लीन शेव का यानि करीबी शेव का हो, तो आधे से भी कम कपड़ों में एक नहीं बल्कि दो-तीन लड़कियां ज़रूर लड़के के करीब नज़र आती दिखाई देती हैं और वो भी फूहड़ अंदाज़ में। शेविंग क्रीम की तरह फेस क्रीम का भी यही हाल है। लड़का क्रीम का पैक खोलता है और लड़कियां ना जाने कहां-कहां से निकलकर प्रकट होने लगती हैं और उसके बाद का सीन फैमिली के साथ बैठकर देखा नहीं जा सकता। क्रीम का एड इतना ख़तरनाक होता है, तो जेंट्स डियोडरेंट, नहाने का साबुन, अंडरवियर के ऐड का प्रेज़ेंटेशन हम-आप रोज़ ही देखते हैं। मुद्दा ये है कि, आदमी के उपयोग की चीज़ों में किसी महिला का क्या काम। सेफ्टी रेज़र से लेकर जींस तक। हर विज्ञापन में सिर्फ़ एक ही चीज़ सबसे ज़्यादा नज़र आती है और वो है ऐड के नाम पर बैड कंटेट दिखाना। भला क्लोज़ शेव में लड़की ना दिखाई जाए, तो क्या शेव अधूरी रह जाएगी ? क्या रेज़र ठीक काम नहीं करेगा ? या फिर शेव करना व्यर्थ हो जाएगा ? अब तो कोई भी प्रोग्राम हो, बस यही डर लगता है, कि कहीं कोई टोइंग टाइप का ऐड ना नज़र आ जाए। दरअसल, अंदर के कपड़ों के एक ऐड में टोइंग का एक्शन भी दिखाया जाता है। बस मेरे आठ साल के भतीजे ने ये ऐड देख लिया और पूछता रहता है, चाचा ये टोइंग करने के बाद नीचे क्यों झुक जाता है ? मैं अक्सर उसके सवाल पर नाराज़गी ज़ाहिर करता हूं, लेकिन वो बेचारा क्या जाने, कि इसका मेरे पास जवाब भी नहीं है। हालांकि, कई साल पहले के ऐड सभी अक्सर गुनगुनाया करते थे। जैसे नया नौ दिन पुराना सौ दिन, खांसी के लिए बस....। या वॉशिंग पाउडर निरमा का ऐड। कहा जाता है कि प्रॉडक्ट कोई भी हो, कंटेट
बेहतर हो तो चीज़ ज़रूर बिकती है, लेकिन अब तो प्रॉडक्ट में कंटेट कम और ऐड में एक्सपोज़र ज़्यादा होता है। अंडरवियर के एक ऐड का ज़िक्र इसलिए करना चाहता हूं, कि इस ऐड में लड़का बेहद बहादुर नज़र आता है, लेकिन उसकी वीरता अश्लील ज़्यादा लगती है। अक्सर बच्चे ऐसे ऐड का सीक्वेंस देखकर उनकी नकल करते हैं। पुरुषों के प्रॉडक्ट ही काफ़ी हैं, महिलाओं के बारे में बात होगी, तो बात करना मुश्किल होगा। बहरहाल, जाने कहां गए ऐड के वो पुराने दिन। अब तो फैमिली के साथ टीवी देखते वक्त यही लगता है, कि बच्चों को सीरियल के कंटेट से बचाया जाए या फिर टोइंग टाइप के ढेरों ऐड से। डियोडरेंट, शेविंग क्रीम, टूथ ब्रश, पेस्ट या कोल्ड ड्रिंक, सभी विज्ञापन में एक सा कंटेट (ना देख सकने वाला ) देखा जा सकता है। मैं तो ऐसे ऐड पर बच्चों के सवालों से लाजवाब हूं, क्या ऐड वाले इतने बहादुर हैं, कि बच्चों के सवालों का कोई जवाब देंगे... ?
Monday, 7 September 2009
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