Thursday, 8 January 2009

ये बात तो ग़लत है...

कोई किसी से ख़ुश हो, और वो बारहा हो, ये बात तो ग़लत है,
रिश्ता लिबास बनकर मैला नहीं हुआ हो, ये बात तो ग़लत है।

वो चांद रहगुज़र का, साथी जो था सफ़र का, था मौजिज़ा (जादू) नज़र का,
हर बार की नज़र से, रौशन वो मौजिज़ा हो, ये बात तो ग़लत है।

है बात उसकी अच्छी, लगती है दिल को सच्ची, फिर भी है थोड़ी कच्ची,
जो उसका हादसा है, मेरा भी तजुर्बा हो, ये बात तो ग़लत है।

दरिया है बहता पानी, हर मौज है रवानी, रुकती नहीं कहानी,
जितना लिखा गया है, उतना ही वाक़या हो, ये बात तो ग़लत है।

ये युग है कारोबारी, हर शै है इश्तिहारी, राजा हो या भिखारी,
शोहरत है जिसकी जितनी, उतना ही मर्तबा (प्रतिष्ठा) हो, ये बात ग़लत है।

(उर्दू अदब के शोहरतमंद शायर निदा फ़ाज़ली के अ`शआर)

अपना ग़म ले के...

अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाए,
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए।

जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं,
उन चिराग़ों को हवाओं से बचाया जाए।

बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं,
किसी तितली को न फूलों से न उड़ाया जाए।

ख़ुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सबमें
और कुछ दिन अभी औरों को सताया जाए।

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।

(मशहूर शायर जनाब निदा फ़ाज़ली की नज़्म)

तन्हा-तन्हा....

तन्हा-तन्हा दुख झेलेंगे महफ़िल-महफ़िल गाएंगे,
जब तक आंसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनाएंगे।

आज उन्हें हंसते देखा तो कितनी बातें याद आईं,
कुछ दिन हमने भी सोचा था उनको भूल ना पाएंगे।

तुम जो सोचो वो तुम जानो, हम तो अपनी कहते हैं,
देर ना करना घर जाने में वर्ना घर खो जाएंगे।

बच्चों के छोटे हाथों को चांद-सितारे छूने दो,
चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे।

अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हों मुमकिन है,
हम तो उस दिन राय देंगे, जिस दिन धोखा खाएंगे।

किन राहों से दूर है मंज़िल, कौन-सा रस्ता आसां है,
हम भी जब थक कर बैठेंगे औरों को समझाएंगे।

(उर्दू अदब के शोहरतमंद शायर निदा फ़ाज़ली के अ`शआर)

Wednesday, 7 January 2009

सफ़र को जब भी

सफ़र को जब भी किसी दास्तान में रखना,
क़दम यक़ीन में, मंज़िल ग़ुमान में रखना।
जो साथ है वही घर का नसीब है लेकिन,
जो खो गया है उसे भी मकान में रखना।
जो देखती हैं निगाहें, वही नहीं सब कुछ,
ये एहतियात भी अपने बयान में रखना।
वो एक ख़्वाब जो चेहरा कभी नहीं बनता,
बना के चांद उसे आसमान में रखना।
चमकते चांद-सितारों का क्या भरोसा है,
ज़मीं की धूल भी अपनी उड़ान में रखना।
सवाल तो बिना मेहनत के हल नहीं होते,
नसीब को भी मगर इम्तिहान में रखना।
(मक़बूल शायर जनाब निदा फ़ाज़ली की नज़्म)

मुंह की बात...


मुंह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन।
आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन।
सदियों-सदियों वही तमाशा, रस्ता-रस्ता लम्बी खोज,
लेकिन जब हम मिल जाते हैं, खो जाता है जाने कौन।
जाने क्या-क्या बोल रहा था, सरहद, प्यार, किताबें, ख़ून,
कल मेरी नींदों में छुपकर, जाग रहा था कौन।
मैं उसकी परछाईं हूं या वो मेरा आईना है,
मेरे ही घर में रहता है, मेरे जैसा जाने कौन।
किरन-किरन अलसाता सूरज, पलक-पलक खुलती नींदें,
धीमे-धीमे बिखर रहा है, ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन।
(शायरी की दुनिया की मक़बूल शख़्सियत जनाब निदा फ़ाज़ली की नज़्म)