Wednesday, 1 October 2008

उल्फ़त

उल्फ़त की राह यूं उलझाई नहीं जाती,
जाते हुए मुसाफ़िर को आवाज़ दी नहीं जाती।

टूटे आइने पर हंसने का हुनर सीख लो,
बिछड़े हमराही के लिए पलकें भिगोई नहीं जाती।

तन्हा जीना है मोहब्बत का दस्तूर यहां,
बिखरे दिलों की दुहाई सुनी नहीं जाती।

वफ़ा को कहते हैं इश्क़ का मुक़ाम,
ये वो मंज़िल है, जहां तक कोई नज़र नहीं जाती।

किस तस्वीर के चेहरे पर तेरा नाम लिखूं,
यूं चाहत की रुसवाई की नहीं जाती।

कोई बहका नहीं सकता हमें मगर,
आज भी प्यास किसी की देखी नहीं जाती।

ख़ुशियों के भी होते हैं क़ायदे,
किसी के ज़ख़्मों की हंसी उड़ाई नहीं जाती।

उल्फ़त की अदा समंदर से सीखो,
हज़ार लहरों में भी कोई मौज तन्हा छोड़ी नहीं जाती।

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